Sunday 2 September 2018

मन मेरो कालिया सो बमके

।। स्वरचित बुन्देलखण्डी गीत के माध्यम से सभी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ।।

मन मेरो कालिया सो बमके,
     तुम नाथो गिरधारी।
जमुना सारी कारी कर दयी,
     तुमपेइ जाये संभारि।

जल जन्तु सो खुदई जरत है,
     मन मेरो कालिया सो बमके।१।

दर्प के मारे कंस को तारो,
    मन से भर भर मैल निकारी।
बड़ो झूम अंधड़ सो छाओ,
   ऊ तृणावर्त की धूरा झारी।

तोरे कारज हमइ हैं बाकी,
   मन मेरो कालिया सो बमके।२।

गुफा बनें लम्बी अंधियारी,
   लेटो अघासुर मति लपेटें।
ऊकी भी सुन लयी तुमने तब,
   सखा बचाबे चीर के फेकें।

तुरत गति सें जो भी चलत है,
    मन मेरो कालिया सो बमके।३।


शकट बना दये बगला हलके,
   बगुल उड़न नइ पाये बिचारे।
अघ शिशुपाल कटाई मुंडी,
   धरम मार्ग, नहीं कछु विचारे।

मान की मदिरा पी-पी मटकत,
    मन मेरो कालिया सो बमके।४।


कोउ को बछड़ा, किते की गइयाँ,
   पकड़-पकड़ के दूध पियाबो।
अबे तलक बै रई जा गंगा,
   तुमने मटका ऐसो ढरकाओ।

जो भी ठाड़ो है जोड़ के चुल्लू,
   मन मेरो कालिया सो बमके।५।

पीत वसन सें नील सी झाईं,
   पीठ फेर के काये डटे हो।
मचकुंद करे सब काम तुमाओ,
  दरशन दो प्रभु नाम जपत हों। 

किरपा तुमाई सोच के बलखे,
  मन मेरो कालिया सो बमके।६।

बन बन घूमन्तू गौवंश हकैया,
   तनिक इते भी नूपुर सुना दो।
गोपी के मन-दीप तपत हैं,
   इनके भी बासन खड़का दो। 

कारे तन पाके बिजली सो धक्का,
   मन मेरो कालिया सो बमके।७।

बीच समर में कविता सूझी ,
   हमें है सुनने बचन तुम्हारे।
उनपे भारी बंसी तुम्हारी, 
   अघा न पाएं कान हमारे।

बंध काट तुम ओर है लपके,
   मन मेरो कालिया सो बमके।८। 
   
मन मेरो कालिया सो बमके,
     तुम नाथो गिरधारी।  
 तुम नाथो गिरधारी।  
     तुम नाथो गिरधारी।। ।।


- सोमेंद्र चौबे 

  


   










   






   



 

 

 

Tuesday 21 August 2018

कुहासे पर चोट

कुहासे पर चोट करती एक एक किरण का नाम लो।
तम के भयावह रज्जुओं से जकड़ उसको बाँध दो। 
पार्थ न आने पाए कोई, गोविन्द अभी बड़ी दूर हैं।
वो ही रह सकते यहाँ, जो धुर नशे में चूर हैं।

भ्रम में उगे, भ्रम में पले, भ्रम में बढ़े, भ्रम में मरें।
अस्तित्व ही भ्रम का यहाँ, आए न कोई हमें ज्ञान दे।
विश्वास पृथ्वी बन गया, अब ठोस तल पर हैं खड़े।
विकल प्रश्नों से तुम्हारे, किञ्चित मात धरती फट पड़े।

भूत के माने सभी अब दृश्य शाश्वत बन चुके।
नए हैं जो वो कोलाहल सभी नैरन्तर्य के प्रतिषेध हैं।
कोई जानता न बूझता न सोचता क्योंकर यहाँ।
जड़ता ही स्थिरता हुई, गति स्वयम हाहाकार है।

माया चकित, ईश्वर चकित, उदास क्या गतिशील है।
मानवी और अन्य सृष्टि, भिन्नता क्या मेल है।
यही भास होता है प्रतीत वह चमक खोयी है कहीं।
कहीं रगड़ कर कहीं अन्य भांति प्राप्त करना है वही।

नवदीप यदि मिले जाये कहीं, उसकी मानना न मानना।
पर प्रेम से मिलना सदा, दे जीने की शुभकामना।
अन्वेषणों इतिहास में तारतम्य सुन्दर बन पड़े।
छोड़ के जड़ता यहीं निज मार्ग पर हम चल पड़ें।


- सोमेंद्र चौबे









Thursday 16 August 2018

परम आदरणीय पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटलबिहारी वाजपेयी जी को मेरी स्नेहमयी श्रद्धांजलि

तुम फिर आना,
बार बार हर बार,
पुनः जन्म ले मानव का ,
करने धरा का उद्धार, तुम फिर आना। 

हे भारती के प्रतापी पूत,
साहित्य माथे कोकिल की कूक ,
तुम गुंजन , तुम मंथन , तुम गर्जन,
तुमसे  शब्दित कोटि हृदयों की हूक,
करने वाणी का श्रृंगार, तुम फिर आना।

खत्तधम्म का रूखा पथ,
या पत्रधर्म का कोलाहल,
तुमसे ही था सरस सलिल,
हे धीर पुरुष, जननी के गर्व,
रचने नयी उपमा कौशल की , तुम फिर आना।

अन्धकार घना, स्थिर दीपक हो,
कठिन अरण्य, पथ के प्रतिपादक हो,
विकट समय, फिर तुम घटवासी हो,
मर्यादा बन राष्ट्र धर्म की,
अनाचार की ध्वजा गिराने , तुम फिर आना।

हे अटल मित्र मानवता के,
हे अटल अभिभावक लोकतंत्र के ,
हे अमर नायक जनस्मृतिपटल के ,
करके सूना मन जन-नारायण का , तुम न जाना ,
तुम फिर आना।


 - सोमेंद्र चौबे