Tuesday, 21 August 2018

कुहासे पर चोट

कुहासे पर चोट करती एक एक किरण का नाम लो।
तम के भयावह रज्जुओं से जकड़ उसको बाँध दो। 
पार्थ न आने पाए कोई, गोविन्द अभी बड़ी दूर हैं।
वो ही रह सकते यहाँ, जो धुर नशे में चूर हैं।

भ्रम में उगे, भ्रम में पले, भ्रम में बढ़े, भ्रम में मरें।
अस्तित्व ही भ्रम का यहाँ, आए न कोई हमें ज्ञान दे।
विश्वास पृथ्वी बन गया, अब ठोस तल पर हैं खड़े।
विकल प्रश्नों से तुम्हारे, किञ्चित मात धरती फट पड़े।

भूत के माने सभी अब दृश्य शाश्वत बन चुके।
नए हैं जो वो कोलाहल सभी नैरन्तर्य के प्रतिषेध हैं।
कोई जानता न बूझता न सोचता क्योंकर यहाँ।
जड़ता ही स्थिरता हुई, गति स्वयम हाहाकार है।

माया चकित, ईश्वर चकित, उदास क्या गतिशील है।
मानवी और अन्य सृष्टि, भिन्नता क्या मेल है।
यही भास होता है प्रतीत वह चमक खोयी है कहीं।
कहीं रगड़ कर कहीं अन्य भांति प्राप्त करना है वही।

नवदीप यदि मिले जाये कहीं, उसकी मानना न मानना।
पर प्रेम से मिलना सदा, दे जीने की शुभकामना।
अन्वेषणों इतिहास में तारतम्य सुन्दर बन पड़े।
छोड़ के जड़ता यहीं निज मार्ग पर हम चल पड़ें।


- सोमेंद्र चौबे









Thursday, 16 August 2018

परम आदरणीय पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटलबिहारी वाजपेयी जी को मेरी स्नेहमयी श्रद्धांजलि

तुम फिर आना,
बार बार हर बार,
पुनः जन्म ले मानव का ,
करने धरा का उद्धार, तुम फिर आना। 

हे भारती के प्रतापी पूत,
साहित्य माथे कोकिल की कूक ,
तुम गुंजन , तुम मंथन , तुम गर्जन,
तुमसे  शब्दित कोटि हृदयों की हूक,
करने वाणी का श्रृंगार, तुम फिर आना।

खत्तधम्म का रूखा पथ,
या पत्रधर्म का कोलाहल,
तुमसे ही था सरस सलिल,
हे धीर पुरुष, जननी के गर्व,
रचने नयी उपमा कौशल की , तुम फिर आना।

अन्धकार घना, स्थिर दीपक हो,
कठिन अरण्य, पथ के प्रतिपादक हो,
विकट समय, फिर तुम घटवासी हो,
मर्यादा बन राष्ट्र धर्म की,
अनाचार की ध्वजा गिराने , तुम फिर आना।

हे अटल मित्र मानवता के,
हे अटल अभिभावक लोकतंत्र के ,
हे अमर नायक जनस्मृतिपटल के ,
करके सूना मन जन-नारायण का , तुम न जाना ,
तुम फिर आना।


 - सोमेंद्र चौबे