Friday 13 January 2023

समयानुकूल गीतोपदेश!

रणभेरी बज रही है. यह युद्ध का समय है. महाभारत से भी बड़े युद्ध का. मानवता के संरक्षक भगवान श्रीकृष्ण अगले अवतार तक अवकाश ले चुके हैं. अर्जुन निपट अकेला रन में जाने की तैयारी कर रहा है. दांव पर है देश की संस्कृति, सभ्यता, परिचय. पिछली बार की तरह भीष्म विपक्ष में नहीं हैं. द्रोण भी विपक्ष में नहीं हैं. यहाँ तक कि दुर्योधन भी विपक्ष में नहीं है. ये सब साथ हैं. यह महाभारत नहीं है. इससे भी बड़ा युद्ध है. इसमें असामान्य रक्तपात से भी अधिक होगा. इसमें शरीर क्षत विक्षत नहीं होंगे. ये युद्ध लड़ा जायेगा बुद्धि के स्तर पर. आत्मा पर आघात होगा, आत्मा जलेगी, आत्मा को ही दुःख होगा. पूरे राष्ट्र की आत्मा एक साथ दांव पर लगी है. मन पर घोर भ्रम का घटाटोप अन्धकार है. वह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि युद्ध कि तैयारी हो चुकी है और इस बार धर्मं युद्ध नहीं हो रहा है. यहाँ अश्वत्थामाकृत दुष्कृत्य रणकौशल माने जाते हैं.
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पिछला महाभारत सरल युद्ध था. अपने सगे विपक्ष में थे पर थे तो दूसरी ओर ही. इस बार पराये भी अपने दल में व्याप्त हो गए हैं. जान नहीं पड़ता कि कब कहाँ शत्रुओं की रक्षा के लिए अपना सीना आगे कर देंगे. कहीं ये उस दिव्यास्त्र जैसी स्थिति तो नहीं होगी जो कर्ण ने अर्जुन के लिए बचा कर रखा था और किसी और पर चला कर बेकार कर दिया. इतिहास अपने को दोहराता है. कल कर्ण के साथ हुआ था आज अर्जुन के साथ क्यों नहीं होगा? ये अपने से दिखने वाले पराये कहीं हतोत्साहित करने के लिए ये तो न कहेंगे कि हे अर्जुन गांडीव पुराना हो गया. इसे अलग रख कर कलाश्निकोव उठा लो.
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रथ पर जो बैठा है, रण में उसका पुरुष होना मायने नहीं रखता. युद्ध में काम आता है युद्ध कौशल, हर वार से स्वयं को बचा ले जाने वाली लचक. शत्रु से घृणा पहले क्रोध का, क्रोध मोह का, और मोहवश ध्यान भटकना निश्चित पराजय का कारण बन सकती है. शत्रु से प्रेम अपने हाथों को वार करने से रोक सकता है. बड़ी विकट स्थिति है. श्रीकृष्ण का उपदेश सचेत कर रहा है. युद्ध युद्ध के लिए करो. जय पराजय, मान अपमान के लिए नहीं. हा मधुसूदन!  आप कहाँ चले गए. आपके बिना इस भारतभूमि का कौन रखवाला है.
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मधुसूदन अट्टहास करते हैं. पिछले महाभारत में मैं क्या था? एक सारथि, वही सारथि न जिसके पुत्र को तुम लोगों ने धर्मराज का साथ होते हुए भी पग पग पर अपमानित किया था. और बाद में कैसा करुण रूदन किया था कि व्यर्थ में भ्राता की हत्या कर दी. माता को दोष दिया था कि उसने बताया नहीं. आज तो माता तुम्हारे साथ है. कातर भाव से खड़ी है. बचा लो पुत्रो. धर्मं के ३ पैर टूट गए हैं. मैंने जो गीता का उपदेश दिया था वो तो आज भी वही है. इस बार तो कौरव क्या पांडव क्या सभी ने उसे भली प्रकार पढ़ लिया है. अब तो सभी आत्मा और शरीर के भेद को जान गए हैं. फिर भी नहीं समझते कि सत्य क्या है और इसे असत्य से अलग करके कैसे दृष्टिगोचर किया जाये. जाओ अर्जुन आत्ममंथन करो. हो सके तो सभी सनातनों को कराओ. यह कलियुग है. इसमें मंत्र है संघे शक्तिः. एकता में बल है. यदि मूर्खों को भी यह मंत्र पता है तो वे ब्रम्हज्ञानियों को परास्त कर देंगे. ईश्वर को दोष नहीं लगता. मैं आज भी तुम्हारा सारथि हूँ. मुझे पर विश्वास रखो और अपना गांडीव मत रखो.
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