Monday, 15 February 2010

वृहत्तर भारत की कल्पना

आज अचानक ये बात मन में आ गयी. यहाँ विदेश में घूमते घूमते बहुत से अफ़गानिस्तान वालों से मुलाक़ात होती है. लगभग हर अफ़गानी टैक्सी वाले के पास हिंदी गानों की कोई न कोई कैसेट होती है. वे भारत से बेइन्तेहा प्यार करते हैं. उनके लिए भारत उनके दिल के करीब है. ज्यादातर अफगान मानते हैं कि भारत उनका भला चाहता है.
अफ़गानिस्तान का भारत के इतिहास में बहुत बड़ा योगदान है. हमारे इतिहास के कई महत्त्वपूर्ण चरित्र अफगानिस्तान में पैदा हुए. पाणिनि, गांधारी के समय से ही अफगानिस्तान भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है.
यह गुप्त वंश, मौर्य वंश, कनिष्क, लगभग संपूर्ण मुग़लकाल, और महाराज रणजीत सिंह के समय भारत का अंग भी रह चुका है. अंग्रेजों के समय में सिख राज्य की समाप्ति के बाद अफ़गानिस्तान राजनैतिक रूप से भारत से अलग हो गया.
आजादी के बाद से ही भारत और अफ़गानिस्तान के बीच प्रगाढ़ सम्बन्ध रहे हैं. रूस और अमेरिका की आपस की खींचतान ने अफ़गानिस्तान को सुर्खियों में आने के सारे गलत कारण दे दिए. ये भारत और अफ़गानिस्तान के आपसी संबंधों को बड़ा झटका था.
अमेरिका द्वारा अपनी गलती सुधारे जाने के बाद आज फिर से वहां भारत की मौजूदगी महसूस की जा सकती है. भारतीय कंपनियों ने वहां अच्छे विकास कार्यों के कारण वहां की आम जनता का दिल जीत लिया है.
अफ़गानी स्वभावतः निर्भीक, और स्वाभिमानी लोग हैं. अफगान समाज छोटे छोटे कबीलों में बँटा हुआ है. रूसियों ने वहां के सामाजिक ताने बने में परिवर्तन करने की कोशिश की इसलिए वे असफल हो गए. इन्ही कारणों से अँगरेज़ भी असफल हुए थे. और अगर ऐसा ही चलता रहा तो अमेरिका के सफल होने के अवसर भी कम ही हैं.
एक ताकतवर और सुशिक्षित अफ़गानिस्तान विश्व शांति के लिए अति आवश्यक है. विशेषतः भारत के भविष्य के लिए तो बहुत ही ज्यादा.
इस बात में संशय है कि वे अपने आप इतना आगे बढ़ पाएंगे. दूसरी ओर हमारे बाकी पडोसी भी बहुत अच्छी स्थिति में नहीं हैं. सभी के साथ कोई न कोई समस्या है और धीरे धीरे चीन उन्हें हमसे दूर करता जा रहा है.
अफ़गानिस्तान के पास व्यापक तेल व गैस भण्डार हैं. इसी वजह से सबको उसमें रूचि है.
ऐसी विषम परिस्थिति में वृहत्तर भारत का सपना साकार करने की दिशा में एक प्रयास किया जा सकता है. हमें सबकी और सबको हमारी जरूरत है. हमारे धर्मं निरपेक्ष ढांचे में सब समा सकते हैं. ये कतई जरूरी नहीं कि सब वर्तमान भारतीय संविधान को माने, शुरुआत में एक स्वतंत्र देशों के राष्ट्रकुल की तर्ज पर एक विदेशनीति, एक रक्षानीति  और मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाया जा सकता है. कालांतर में शिक्षा के द्वारा मनभेद भी दूर किये जा सकते हैं.
इस प्रकार जो नया राष्ट्र जन्म लेगा वो दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्रों में से एक होगा. इससे हमें चीन को मध्य एशिया के राज्यों के साथ मिलकर घेरने में मदद भी मिलेगी. एक शक्ति संतुलन स्थापित होगा.
हमारे ऊपर है कि इसे एक बेकार का विचार मान कर फेक दें या सामूहिक संकट के समय आये हितैसी विचार जैसा जानकर इसे पालें और मूर्तरूप दें.
जय भारत.

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