Friday 15 January 2010

अथातो ग्रहण जिज्ञासा

देखो पापा ये सफ़ेद रौशनी का बिम्ब अब धीरे धीरे इस काली छाया से स्थानापन्न होता जा रहा है. बच्चे की आवाज में प्रसन्नता मिश्रित कौतूहल था. उसने सुबह से जो श्रम किया था अब उसका  पारितोषक प्राप्त होने का समय था. पिता ने बालक की प्रसन्नता में भागीदार बनते हुए सफ़ेद गोले को देखा. फिर कहा अब जाकर के टीवी में भी इमेज देख आओ. बच्चे ने टीवी की ओर देखा. हम्म्म ये तो लगभग ऐसा ही है पर कितना अच्छा होता कि हम भी ऐसे विडियो बना पाते. पिता ने कहा बड़े होकर के अपना कैमरा लेना फिर विडियो भी बना लेना. अभी एक्स रे फिल्म से देख लो पर सीधे मत देखना, पिता के स्वर में गंभीरता का पुट था. बच्चे से अलमारी खंगाली. इसमें था न एक्सरे, कहाँ गया? पूरा परिवार एक्सरे ढूँढने में लग गया पर वो नहीं मिला. दूर नए पडोसी के बच्चे एक्सरे से ग्रहण देख रहे थे. पास जाने में संकोच हुआ. लगा कि कहेंगे कभी तो आते नहीं, अब मजे लेने हैं तो आ गए. बच्चा नहीं गया. मन में सुकून था. अपने बनाये यन्त्र से ग्रहण के प्रभाव को तो देख लिया. और किसी ने इतना दिमाग लगाया क्या. उसने कई दिन से इस विषय के बारे में अध्ययन करना शुरू कर दिया था. घर में रखे ग्रहलाघव को ज्यादा न समझ आते हुए भी कई बार पढ़ डाला था. दैनिक उपयोग के पंचांग ने भी उसकी समझ में वृध्दि की थी.  बीच बीच में माँ आ कर टोकती थी, ग्रहण में कितना ऊधम कर रहे हो. बच्चे ने ग्रहण का अनुभव कर लिया था पर अब उसकी नजर आस पड़ोस के पालतू जानवरों पर थी. ये इतने डरे हुए क्यों हैं? ये पक्षी अभी तो इस तरफ गए थे जैसे रोज सुबह जाते थे. आज शाम की बजाय अभी से वापस क्यों जा रहे हैं? ये बिल्ली  छिप के घर के अन्दर क्यों बैठी है. इन सवालों का क्या जवाब है? हैरानी से पिता की ओर देखा, उन्होंने अख़बार बढ़ा दिया. बच्चे ने बहुत सोच विचार कर के अपना उत्तर ढूंढ लिया. बहुत से मनुष्य भी डरे हुए हैं. दोनों के डरने के अलग अलग कारण हैं. वे शायद दो कारण हैं. प्रथम तो उन्हें पता नहीं है कि क्या हो रहा है, वे इसलिए डरे हैं कि आज ये सब कुछ विचित्र क्यों हो रहा है. दूसरे इस वजह से डरे हैं कि उन्हें यह ही  सिखाया गया है कि डरो. हर उस चीज़ से डरो जो समझ नहीं आती. जिन्होंने लिखा था कि ऐसा मत करो वैसा मत करो उन्होंने शायद कुछ अध्ययन करके लिखा था. जो भी ज्ञात अज्ञात साधन थे उनके आधार पर अध्ययन किया था. उनकी सोच सूक्ष्म थी. पर इन डरने वालों ने उनके एक एक शब्द को परी कथा की तरह से रट लिया. उन्होंने कहा कि ईश्वर का ध्यान करो. मनुष्यों ने अर्थ लगाया कि कुछ अशुभ होगा इसी लिए ईश्वर के ध्यान को कहा है.  उन्होंने कहा कि ग्रहण के बाद नहा लेना. मनुष्यों ने अर्थ लगाया कि अशुद्ध हुए होंगे इसलिए नहाने को कहा है. बच्चे ने सोचा कि ध्यान लगा के देखते हैं क्या होगा. वो एक जगह शांति से बैठ गया. वाकई लगा कि आज कुछ भिन्नता है. अखबार में लिखा था कि जानवरों के भयभीत होने का कारण उनकी जैव घडी में बदलाव होना है जिसे वे समझ नहीं पाते. मनुष्य भी तो जानवर ही है. जब तक ज्ञान नहीं जानवर ही तो है. बच्चा इतना नासमझ भी नहीं था. जानता था कि  विज्ञान में हर सिद्धांत एक परिकल्पना ही तो होता है. एक ऐसी परिकल्पना जो प्रयोगों के द्वारा पुष्ट हो गयी हो. अब तक टीवी पर भांति भांति के विचार सुन कर समझ चुका था वैज्ञानिक ग्रहण को ले कर इतने उत्साहित क्यों होते हैं. उन्हें मौका जो मिलता है ब्रम्हांड के रहस्य जानने का. हीलियम भी तो सूर्य ग्रहण कि वजह से ही खोजा गया था. इसी वजह से ही तो आइन्स्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत को सर्व मान्यता मिली थी. पर जो उसकी समझ में नहीं आ रहा था वो यह कि इसमें ध्यान या पूजा पाठ क्यों करते हैं? ध्यान करना तो अच्छी  बात है रोज करना चाहिए पर ग्रहण में क्यों इतना जोर दे कर के कहा है. माँ के पास गया. उत्तर मिला कि अशुभ से बचने का एक मात्र सहारा ईश्वर ही तो है. तर्क जोरदार था और सत्य भी. किन्तु कोई और भी कारण होगा. पिता के पास गया. पिता ने कहा कि जिसने कहा है कि ध्यान करो उसी ने और भी कारण बताये होंगे.  बोलो संसार कितने तत्वों से मिल कर बना है? बच्चे ने कहा पांच. बहुत अच्छे, अब ये बताओ ग्रहण कैसी घटना है? आकाशीय, बच्चों के पास बहुत से प्रश्नों के अतिरिक्त बहुत से उत्तर भी होते हैं. क्या शरीर में आकाश नहीं होता? पिता ने फिर पूछा. हाँ क्यों नहीं होता, नहीं तो ये अंग और बाकी अवयव कहाँ टिके हुए हैं? बच्चा बुद्धिमान था. ठीक है तो अब सुनो. पिता ने कहना शुरू किया. तीन सूत्र हैं जिन पर विचार की आवश्यकता है. प्रथम ये कि यथा पिण्डं माने जैसा ये शरीर है, तथा ब्रम्हांडम वैसा ही ये जगत है. दूसरा ये कि मन चन्द्रमा का प्रतिनिधि है और तीसरा ये कि सूर्य आत्मा का बल है.  अब बैठो और अपना उत्तर स्वयं ढूंढो. बच्चे ने ध्यान लगा कर के चिंतन शुरू किया. बाल मन बहुत निर्मल होता है. इसीलिए वो जल्दी से कल्पनाएँ भी कर लेता है. उसे समाधान भी मिल जाते हैं. समझ में आने लगा सूर्य ग्रहण के समय शरीर में सूक्ष्म परिवर्तन होते हैं, और नहीं तो बायो क्लोक के चेंज होने का क्या मतलब है. अंतरिक्ष में परिवर्तन हो तो अंतरिक्ष विज्ञानी को सुविधा होती है, अंतरिक्ष के रहस्य समझने में. शरीर और मन में परिवर्तन होते हैं तो आत्म जिज्ञासु को सुविधा होती है, आन्तरिक रहस्यों को समझने में. उसने अपना रहस्य ढूढ़ लिया था. ये तो दर्पण में से पैदा हुए बिम्ब को निहारने से भी ज्यादा आनंददायक है. वो ख़ुशी से उछल पड़ा.
अन्वेषकों के लिए सूर्य ग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण हमेशा से ही आकर्षित करने वाले विषय रहे हैं. यद्यपि विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलने वाले डरावने उल्लेखों की वजह से लोग ग्रहण के समय बाहर निकलना उचित नहीं समझते, परन्तु फिर भी जिज्ञासू को कहाँ किसी का डर होता है. वह तो लगा रहता है अभी साधना में.
ग्रहण के समय घर के बड़े बुजुर्ग हमेशा कहा करते थे. बाहर मत निकलो, ग्रहण के समय कुछ खाने को नहीं मिलेगा, जो खाना है वो भी पहले ही ख़तम कर लो. ग्रहण के समय वाला खाना फेक देते हैं. बगैरह बगैरह. ऊपर लिखी कहानी में अतिरंजना हो सकती है पर यह एक ऐसी स्थिति का स्मरण है जो केवल ऐसे मन को प्राप्त है जो बच्चा है. यह एक ऐसी घटना का स्मरण है जब मैंने पहली बार किसी ग्रहण को इतनी गंभीरता से लिया था.
मैंने भी बालसुलभ जिज्ञासा से वे सरल उपकरण बनाये थे और अपने तमाम साथियों के साथ पूरे मनोयोग से उस महान खगोलीय घटना का अवलोकन किया था. बड़ा आनंद आया था, पर सोचिये कि अगर हमारे साथ के बड़े लोगों ने हमें निरुत्साहित किया होता तो क्या हमें ग्रहण के पीछे छिपे रहस्यों का पता चलपाता.
ऊपर लिखी कहानी में बच्चा जिज्ञासा का प्रतीक है और पिता धीर बुद्धि एवं ज्ञान का.आशा है सभी अपने अन्दर के इस बच्चे को हमेशा बच्चा ही रहने देंगे और पिता के ज्ञान की वृद्धि के लिए अधिकाधिक ग्रंथों का अध्ययन करेंगे

2 comments:

  1. Excellent writing. Very Well ended.

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  2. Excellent Writing, very well ended. --- Asheesh

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