Monday 15 February 2010

मास्टर जी की आ गयी चिट्ठी

अनन्या सो रही है. रात को यू टयूब पर गाना सुनते सुनते उसे नींद आ गयी थी. वो अब एक साल की होने वाली है. उसके दिन भर के क्रियाकलापों में मस्ती करना, अपने आप चलने की कोशिश करना और अपने पसंदीदा गाने सुनना शामिल है. लकड़ी की काठी, बन्दर ने खोली दूकान, नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए, मास्टर जी की आ गयी चिट्ठी – इन सब गानों में बहुत छोटे छोटे बच्चों को भी आकृष्ट करने की असीम क्षमता है. बच्चे पहचान लेते हैं की कौन सा गाना उनका है और कौन सा नहीं. मैं तो एक दिन ख़ुशी से उछल पड़ा जब मैंने देखा कि एक गाने में बिल्ली को म्याऊँ करते देख कर उसने भी बोला ‘म्याऊँ’. गुड लर्निंग – है ना. अंग्रेजी गाने भी बच्चों का ज्ञान बढ़ाते हैं जैसे ट्विंकल ट्विंकल लिटल स्टार अगर उन्हें इशारों के साथ गाया जाये.
बच्चे माता पिता से बहुत सीखते हैं. और हो भी क्यों ना इसीलिए तो कहते हैं कि माता पिता के संस्कार बच्चों में आते हैं. माँ को तो प्रथम गुरु कहा गाया है. वो जो सिखा दे बचपन में, बच्चा वैसा ही हो जाता है. हर माँ को चाहिए कि अपने बच्चे को उत्तम संस्कार दे. शिवाजी महाराज की माँ उन्हें गीता और रामायण की कहानियां सुनाया करती थीं. और अभिमन्यु का किस्सा तो आपको याद होगा ही. पिता से बच्चे में स्वावलंबन के गुण आते हैं. पिता से बच्चा सीखता है कि वृहद् महत्व के मुद्दों से कैसा निपटा जाये. बचपन तो होता ही आनंद के साथ सीखने के लिए है. आस पास के लोग, परिचित, बालसखा, किन्टर गार्डन या स्कूल के टीचर, ये सभी कहीं ना कहीं गुरु की भूमिका का निर्वहन करते हैं. हमारे स्कूल में साथी बच्चों ने एक गेम बनाया था. जियोग्राफी कि बुक में से मेप निकाल के एक बच्चा किसी स्थान का नाम देखता था और फिर बाकी से उसे ढूँढने को कहता था. इस क्रम में तत्कालीन उत्तर प्रदेश के सारे जिले मय लोकेशन के याद हो गए. फिर यही क्रम हमने विभिन्न राज्यों के साथ दोहराया. फिर विश्व मानचित्र का नंबर आया. ५वी कक्षा पास करते करते लगभग विश्व के सारे शहर मय लोकेशन के याद हो गए थे. आजकल फ़िल्मी गीतों की अन्त्याक्षरी का बहुत चलन है. हमने यही काम देश दुनिया की विभिन्न जगहों के साथ, महापुरुषों के नामों के साथ किया. बहुत मजा आया और पढाई की पढाई.
हमारे स्कूल में एक अध्यापक थे श्री एच एन साहू, वे हर वस्तू को बड़ी वैज्ञानिक दृष्टि से देखते थे. उन्होंने हमें ढेर सारे प्रयोग कराये. ऐसा चाव लगा फिजिक्स का कि दिन दिन भर लैब से नहीं निकलते थे. नतीजा ये हुआ कि जब एग्जाम हुए तो बाहर से आये परीक्षक देख के दंग रह गए कि इस स्कूल के बच्चे इतने प्रयोग कैसे कर सकते हैं. आज उनकी बड़ी याद आती है . मेरे इंजीनियर बनने में कड़ी मेहनत के साथ साथ ऐसे श्रेष्ठ अध्यापकों का बड़ा योगदान है.
बहुराष्ट्रीय कम्पनी ज्वाइन करने के बाद देखा कि यहाँ सीखने पर बड़ा जोर रहता है. सोफ्ट्वेयर के क्षेत्र में तो वैसे भी नित नए नए परिवर्तन आते रहते हैं. अगर सीखने का गुण नहीं है तो बड़ी मुश्किल होगी. यहाँ प्रौद्योगिकी के साथ साथ प्रबंधकीय कौशल, एक से अधिक भाषाओँ का ज्ञान और भी कई सारे विषयों का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक है.
सीखने की बात हो और गूगल एवं विकिपीडिया  की बात न हो तो मजा नहीं आएगा. अब तो साधारण सी बात के लिए भी गूगल पर सर्च करना आम हो गया है. कोई एकेडेमिक टॉपिक हो तो सर्च रिजल्ट विकी पर ही लेकर जायेगा. विकी ज्ञान का भण्डार है. एक बात जो ठेस पहुचाती है वो यह कि भारतीय भाषाओँ में अधिक लेख नहीं हैं. शायद कोई लिखना नहीं चाहता. अगर ये सब ज्ञान का भण्डार भारतीय भाषाओँ में खुल गया होता तो हमारे लोगों को बहुत लाभ होता. दूसरी बात यह कि हर खोज के लिए पुरातन ग्रीस की तरफ इशारा कर देते हैं. हमारे पूर्वजों के किये किसी खोज का रिकॉर्ड या तो प्रकाशित नहीं किया जाता या उसे दोयम दर्जे की तरह प्रस्तुत किया जाता है. इसका एक ही इलाज़ है. हम प्रयास करें कि अधिक से अधिक लेख, अधिक से अधिक वेब साइट्स बनायें और हमारे लोगों के अविष्कारों को उचित स्थान दिलाएं. अगर हिंदी में सारा ज्ञान आसानी से मिलेगा तो लोग हिंदी में काम करने में अधिक उत्साह दिखायेंगे.
हमारी मातृभाषा हिंदी है. हिंदी की भी एक माता है – संस्कृत. संस्कृत में हिंदी से ज्यादा ज्ञान का कोष छिपा हुआ है. इसे पढने के अपने फायदे हैं. कहते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले जर्मनी वाले बहुत सारा संस्कृत साहित्य ले गए थे. उन्ही से प्रेरित होकर उन्होंने बड़े भारी अस्त्र शस्त्र बनाये. संस्कृत का तो एक और भी लाभ है. संस्कृत बोलना यानि कि दिन भर प्राणायाम. नित्यप्रति नवीनतम शोधों में प्रमाणित किया जा रहा है कि संस्कृत पढने से स्मृति बढती है.
यह तो सब लौकिक व्यवहार की वार्ता हुई. मानव जीवन का उद्देश्य अन्य प्राणियों से अलग है. बाकि सब भोग योनियाँ हैं और मानव देह प्राप्त करना मुक्त होने का एक अवसर है. चाहे तो अन्य जीवों की तरह जीवन जी कर के फिर बार बार के आवागमन के फेर में पड़ जाये, चाहे तो जीवन को सार्थक करके मुक्त हो जाये. ये अवसर आध्यात्मिक गुरु की कृपा से फलित होता है. मैं भी एक महान अवतार पुरुष की कृपा से कृत कृत्य हुआ हूँ. आप सब उन्हें जानते भी हैं. श्री श्री रविशंकर जी चारों दिशाओं को अपने तेज़ से देदीप्यमान कर रहे रहे. वे इराक एवं पाकिस्तान तक गए हैं  और भारत में भी दूर दूरस्थ स्थित भाग्य और अशांति के मारे हुओं को उत्थान का मार्ग दिखा रहे हैं. यहाँ स्वीडन में भी उनकी एक शाखा है. उनके बताये तीन सूत्रों में सारा जीवन दर्शन छिपा है. अपने लिए ध्यान साधना, दूसरों के लिए सेवा और सबके आनंद के लिए सत्संग. संसार के सताए हुए मन को और क्या चाहिए. इस विषय पर शेष वार्ता फिर कभी.
ओहो अनन्या के जागने का समय हो गया है. मैं भागता हूँ, अभी उसके लिए पपीते का शेक बनाना है जो उसे अत्यंत प्रिय है. और साथ साथ गाना भी तो गाना है. आ आ ई ई मास्टर जी की आ गयी चिट्ठी.  आप सभी पाठकों को सप्रेम नमस्कार. फिर मिलेंगे. जय भारत.

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