Friday 26 February 2010

पुनर्मिलन

कल तुम्हें देखा,
स्टाकहोम की बस में,
बैठे हुए निर्विकार,
जैसे देखा था पहले भी एक बार.

तुमने भी मुझे देखा,
उसी शांत मन से,
तुम्हारी वहीँ दृष्टि,
मेरे नयनों में एकाकार.

समय रुक गया,
फिर घिरे बादल,
अनुभव हुआ मुझे ह्रदय में,
नीर का अंश.

तुम फिर क्यों आयीं,
सताने मुझे,
या स्मरण कराने,
सोमेन्द्र,
तुम मरे नहीं हो अब तक,
ये ह्रदय स्पंदित है,
चिर युवा,
और जो किया तुमने,
वो प्रेम ही था,
क्षणिक आकर्षण नहीं.

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